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पूकार

  • Poem
  • May 11, 1994
  • 1 min read

निले, पिले, लाल, गुलाबि,

फुल कितने रंगो के |

गुलाब, चमेलि, कमल निरालि,

फुल कितने ढंगो के |

रंग बिरंगे फुल खिले है,

मानो भौरो के गुंजन सुनने |

मालि सावेरे आगाया है,

नन्हे फुलों को चुनने |

मालि! मत तोड़ना इन फुलों को,

कलियां खिलने से डर जायेंगे |

रोक दो ये अल्हड़पन वरना,

ये खिलने से पेहले हि मुर्झा जायेंगे |

जिने दो जिने दो वेरना !!!

इस सामाज पर हमे दिक्कार है |

कागज़ अौर कलम कि स्याहि नेहि,

ये हर बच्चो कि पूकार है |


 
 
 

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