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चाँद और चांदनी

  • Shruti Roy Bir
  • Oct 20, 2017
  • 1 min read

दर्मिया फासले तो मिलो की है मगर, सबके दिलो के तू पास है|

तेरी रौशनी से हर रात होती है उज्वल, ऐ चाँद तू बड़ा खास है|

ईद की रौनक तुझ सही होती, तू चमके तो लगे दीवाली पास है|

तुझीसे है सारा जहा रौशन, बिन तेरे अँधेरा लगे सब अमावस है|

माँ के लोरियों में तेरा ज़िक्र भर देता बच्चो में उल्लास है|

तेरे दीदार से साजन के हाथो बुझति सुहागनों की प्यास है|

दीखता प्रतिबिम्ब तुझमे माँ का, जागति जीवान मे नायी अ]स है|

चाँद को निहारु तो लगता है जैसे, बचपन फिर दिल के पास है|

उस रात शर्माकर चाँद चिलमन में छुपा था,

हसरते तो थी बहुत की हमारे प्यार का इज़हार हो|

घूँघट को जब हटाया इस चाँद से मुखड़े से,

अस्मा में निकल आया चाँद की, उसे भी उनका दीदार हो|

ओढ़कर रख अपने सरज़मीं को ऐ ज़ालिम,

चांदनी है या तेरा बदन कैसे दिल को ये ऐतबार हो|


 
 
 

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