दौर बदलते देखा है
- Poem
- Sep 23, 2017
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सूरज का निकलना, नये जीवन कि शुरूआत है,ज़ींदेगी को हर पल मैने, रंग बदलते देखा है|
जिन आंखो ने खुशियों के सपने देखे थे कभि,
शाम होते हि आंखो से अरमान ढलते देखा है|
नया दौर, नया ज़माना, नये फसानें हैं,
दस्तुरे रिवाज़ बदलते देखा है,
जो आंखें ख्वाब सजाते थे कभि,
ऊन आंखों का प्यार बदलते देखा है|
जरुरतें अौर मजबूरियों का ज़ोर है,
दिवारों सि रिश्तों में दरार बनते देखा है,
आंखों मे जुनून तो होता है मग़र,
हर आंखों का ख्वाब बदलते देखा है|
फुल अपना खुशबू नेही बदलता कभि,
मैने अकसर हवाअों को अपना रूख बदलते देखा है|
कुछ लोग नेहि बदल पाये अपने ऊसूल,
लोगों को खुले आम अौकात बदलते देखा है|
मैने दौर बदलते देखा है...
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