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जी लेने दो ज़रा

  • mypoemsandstories
  • Nov 4, 2023
  • 1 min read

ज़िंदगी बची ही कितनी, जो ज़िंदगी भर साथ निभाने कि बात करु,

बस दो कदम साथ चलने दो ज़रा | जी लेने दो ज़रा।


मुमकिन ही नेहि कि, फिर बरसे पानी इस बंज़र ज़मी पर,

दो बुंद आंसू के ही इन आंखो को, पिलेने दो ज़रा, जी लेने दो ज़रा

मरने का मुझे न ग़म है न डर, वो तो अंतिम सत्य है।

पर मरने से पेहले बस दो कदम साथ चलने दो ज़रा | जी लेने दो ज़रा।


गुलमोहर कि सुखि डालि पर, बेमौसम हि जो नन्ही कलि खिल आयि है,

उसे तनीक अंगड़ाई लेकर बाहें खोलने दो ज़रा |

ये बेफिक्र बचपन उसकी, जी लेने दो ज़रा, बस दो कदम साथ चलने दो ज़रा |


बिखर गए कुछ सपने, बिछड़ गए कुछ अपने तो क्या ?

मिटने से पेहले अपने अक्स को समेटने दो ज़रा, जो रह गए साथ अपने, उन्हें जी लेने दो ज़रा।


ख़ुशी नेही तो ग़म ही सही, आंखे थोड़ी नम ही सही,

दो बून्द आंसू के ही आज, पि लेने दो ज़रा, जी लेने दो ज़रा। जी लेने दो ज़रा।


ज़िंदगी बचि हि कितनी, जो ज़िंदगी भर साथ निभाने कि बात करु,

बस दो कदम साथ चलने दो ज़रा | जी लेने दो ज़रा। जी लेने दो ज़रा।

 
 
 

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