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हे  युवा !!

  • Poem
  • Aug 15, 2013
  • 1 min read

बचपन गुज़रा खेल-खेल में

अपने जवानी को तो यु बर्बाद न कर |

किसीके हुस्न और अदा के नशे में,

जटिलता को दिल में यु आबाद न कर |

माँ के अंचल में सोये हुए ,

उस बचपन को तू शर्मसार न कर |

भिन्न-भिन्न रूप बदलकर,

हर किसी पर युही जान निसार न कर |

पहचान तू अपने शक्ति को;

अपने दुखो का यु मातम न कर |

सर झुकाकर कमज़ोरियों को,

झुक कर यु ही सलाम न कर |

अंतरात्मा को झंझोर दे तू,

अपने हसरतों को नाकाम न कर |

युवा तू सर्वशक्तिमान है,

भारत माँ को यु बदनाम न कर |

धरती माँ को ज़रूरत है तेरी,

यु ही बर्बाद अपनी जवानी न कर |

सरहद की धरती तेरे खून से ही लाल है,

अपने खून को यु पानी पानी न कर |


 
 
 

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