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मासूम सी मोहब्बत

  • Poem
  • Sep 12, 2015
  • 1 min read

मासूम सी मोहब्बत का बस इतना सा फ़साना है,

काग़ज की हवेली है, बारिश का ज़माना है |

क्या शर्त-ए-मोहब्बत है, क्या शर्त-ए-ज़माना है |

आवाज़ भी जख्मी है और वो गीत भी गाना है |

उस पार पहुंचने की उम्मीद बहुत कम है |

कश्ती भी पुरानी है, तूफ़ान भी आना है |

समझे या न समझे वो मेरे अंदाज़-ए-मोहब्बत को,

भीगी हुई आँखों से एक शेर सुनाना है |

भोली सी अदा, कोई फिर इश्क़ की जिद पर है,

फिर आग का दरिया है और डूब ही जाना है |


 
 
 

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